
डॉ. गौर जयंती विशेष
तीनबत्ती पर डॉ. गौर की प्रतिमा स्थापित कराने बनी समिति में इकलौती महिला सदस्य शकुंतला नामदेव की जुबानी मूर्ति स्थापना की कहानी
- अतुल तिवारी
सागर. इंडिया डेटलाइन. ‘तब हम लोग घरों से बाहर नहीं निकल पाते थे। लड़कियों का घरों से बाहर अाना-जाना अाज की तरह इतना आसान नहीं था। लेकिन समिति की सदस्य होने के नाते मैं चंदा एकत्रित करती थी। घर से बाहर अाने-जाने की वजह से कई बार माता-पिता डांटते भी थे’ कहना है शहर के तीनबत्ती पर डॉ. गौर की प्रतिमा स्थापित करने वाली समिति की इकलौती महिला सदस्य शकुंतला नामदेव का।
उन्होंने बताया कि 1970 के दशक में तीनबत्ती पर जब डॉ. गौर की प्रतिमा स्थापित करने चतुर्भुज सिंह राजपूत के नेतृत्व में यह पूरा अभियान चलाया जा रहा था, तब वे पुरव्याऊ स्थित जनता स्कूल में कक्षा 10वीं की छात्रा व स्कूल कैप्टन थीं। समिति में सदस्य के रूप में छात्राअों की जरूरत थी। तब चतुर्भुज सिंह एक दिन जनता स्कूल पहुंचे अौर समिति से जुड़ने के लिए छात्राअों से कहा। स्कूल टीचर ने मेरी अोर इशारा किया, लेकिन मेरी बड़ी बहिन सावित्री नामदेव, जो मेरे साथ ही पढ़ती थीं, ने मना कर दिया।

तब चतुर्भुज सिंह ने कहा कि मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूं। तुम बिल्कुल भी फिक्र मत करो अौर उनकी यह बात सुनकर मैंने समिति का सदस्य बनने का निर्णय लिया। समिति से मेरे जुड़ने के बाद भी अन्य कोई छात्रा अागे नहीं अाई अौर इस समिति की मैं इकलौती सदस्य रही। हां, समय-समय पर कुछ छात्राअों का सहयोग जरूर मुझे व समिति को मिला। लेकिन वे स्थायी सदस्य नहीं बन पाईं।
म्युनिसिपिल स्कूल में होती थी बैठक: 77 वर्षीय शकुंतला नामदेव ने बताया कि तीनबत्ती चौराहे पर उस समय तीनबत्तियां लगी थी। म्युनिसिपल स्कूल में हर रविवार को समिति की होने वाली बैठक में इन बत्तियों को हटाने अौर उनके स्थान पर डॉ. गौर की प्रतिमा स्थापित करने के लिए विचार-विमर्श होता था। समिति से काफी लोग जुड़ चुके थे जो बैठकों में अाते थे। उस समय उन सबके बीच मैं अकेली ही महिला सदस्य हुअा करती थी।
5-5 रुपये चंदा किया एकत्र: समिति सदस्य शकुंतला नामदेव ने बताया कि डॉ. गौर की प्रतिमा स्थापित करने धनराशि की अावश्यकता पड़ी तो सभी पुरुष सदस्य चंदा एकत्र करने के लिए शहर में घूमा करते थे। मुझे भी चंदे की एक बंदी देकर यह कार्य सौंपा गया। मैं भी 5-5 रुपए की बंदी की रसीदें लेकर बहुत से घरों में चंदा मांगने गई। लेकिन तब शहर के अच्छे-अच्छे संपन्न लोगों ने भी चंदा देने से इंकार कर दिया। जब अधिकतर जगहों से चंदा नहीं मिला, तब मैंने बंदी की रसीदों के हिसाब से स्वयं के खर्च के पैसों से चंदा के रुपए जमा कराए। इस तरह समिति के सभी सदस्यों के काफी संघर्ष के बाद 1967 में तीनबत्ती पर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने डॉ. गौर की प्रतिमा का लोकार्पण किया। वर्तमान में शकुंतला नामदेव जबलपुर में रह रही हैं।
ये बात अलग है कि 5 रुपयों का चंदा राशि डॉ., गौर के प्रति सागर वासियों की आदरांजलि रही होगी । जन मानस इस तरह डॉ. गौर से भावनात्मक तौर से जुड़ा । पर जिन्होंने अपने जीवन भर की कमाई शिक्षा को सपर्पित कर दी उनकी प्रतिमा स्थापित करने के लिए चंदे पर निर्भर होना पड़ा ..क्या कहा जाए ?