समाज
रूबी सरकार लाई हैं किसानों के शोषण की ग्राउंड रिपोर्ट
सरकार की मानें तो यह सब उसने किसानों के भले के लिए किया है, जबकि किसानों का कहना है कि उन्हें उपज का सही दाम मिले, इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून बने । साथ ही मण्डी गांव के आसपास ही स्थापित हो। इस कहानी का सबक यही है।

छिंदवाड़ा. इंडिया डेटलाइन. गांंव में रघुनाथ नाम का एक व्यापारी अपनी गरीबी का रोना रोकर उनके छोटे भाई के मकान में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एक साल तक मुफ्त में रह रहा था। गांव में किसानों की फसल पकते ही वह कम कीमत पर उसे मण्डी ले जाकर बेचता और वापस आकर कुछ पैसे किसानों को वापस कर देता था तो कुछ बाद में देने की बात कहकर टाल जाता था। उसने एक साल तक गांव में रहकर गांव वालों का विश्वास जीता। इस तरह उसने साल भर तक गांव के कई किसानों से मण्डी में बेचने के नाम पर अनाज और कुछ नगद राशि उधार ले ली। सीधे-साधे ग्रामीण अपनी भलमनसाहत दिखाते हुए उसे रकम और अनाज दे भी दिया।

यह पंडित विष्णु शर्मा द्वारा सुनाई पंचतंत्र का क़हानी नहीं है। किसान उदयलाल कुशराम का सुनाया नए पंच-तंत्र का ताजा क़िस्सा है। उदयलाल प्रभात जल संरक्षण परियोजना के रिसोर्स पर्सन हैं और परमार्थ समाज सेवी संस्थान के साथ जुड़कर जलाशयों के संरक्षण के लिए ग्रामीणों को जागरूक करते हैं। उदयलाल ने बताया कि एक दिन अचानक रघुनाथ अनाज और नगदी लेकर बीवी और बच्चों के साथ गांव से फरार हो गया। भाई से 50 हजार रुपए उधारी और कुछ गल्ला लिया। इसी तरह रेखा बताती हैं कि उसके घर से 10 कुंतल गेहूं, सविताबाई और सरस्वती धुर्वे से 10- 10 हजार रुपए और 10 कुंतल मक्का के साथ ही कई ग्रामीणों से नगद और अनाज लिया था। ग्रामीणों ने इसकी रिपोर्ट संबंधित कुण्डीपुरा थाना में की। लेकिन इस मामले में पुलिस की निष्क्रियता सामने आई। अब तक पुलिस उसे ढूंढ़ नहीं पाई। ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस चाहे तो ढूंढ़ सकती है, क्योंकि उसके बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र में पढ़ाई कर रहे थे और पूरे परिवार का आधार और राशन कार्ड भी इसी गांव के पते पर बना था।

पर पंच-तंत्र में यह अकेली कहानी नहीं है। शोषण और ठगी की कई और भी हैं। होशंगाबाद जिले की सिवनी मालवा तहसील के ग्राम नंदरवाड़ा में 60 से अधिक किसानों से धान, मूंग, मक्का आदि खरीदकर एक व्यापारी बिना भुगतान किए गायब हो गया। यहां भी एक व्यापारी किसानों की 70 लाख रुपए की फसल लेकर भागा।
देवास जिले के खातेगांव में भी दो व्यापारियों ने करीब दो दर्जन किसानों के साथ करीब 3 करोड़ रुपए का मूंग और चना खरीदा और किसानों को भुगतान के रूप चेक भी दे दिए, जो बाद में बाउंस हो गए। खातेगांव के किसानों ने इस संबंध में एसडीएम कार्यालय में प्रदर्शन कर उन्हें ज्ञापन सौंपा है। वहीं मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल का इस मामले कहना हैं कि इस तरह का मामला कृषि कानून से जुड़ा नहीं है, बल्कि किसानों के लालच से जुड़ा होता है। इस तरह के मामलों पर पहले ही एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए जा चुके हैं।
छिंदवाड़ा के किसान गुलाब पवार बताते हैं कि आज भी उपज मण्डियों में लाइसेंसी व्यापारियों द्वारा मक्का 1200 रूपए में खरीदा जा रहा है। जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 है। गुलाब ने कहा-मण्डी में व्यापारी उपज के तौल के बाद भुगतान में से बारदाने का 500 रुपए जबरन काट लेते हैं। ऊपर से तौर में भी गड़बड़ी करते हैं। गांव में बिना लाइसेंसी व्यापारी घुसकर आदिवासी और गरीब किसानों को मूर्ख बनाते हैं। उन्हें शराब पिलाकर कम कीमत में उनकी उपज खरीद लेते हैं। किसान तो दोनों तरफ से मारा जाता है।
छिंदवाड़ा जिले के सहजपुरी गांव के एक किसान गिरजालाल गोण्ड ने कहा- हम गांव में आए व्यापारी को अनाज इसलिए दे देते हैं, क्योंकि मण्डी हमारे गांव से 40 किलोमीटर दूर है। वहां अनाज बेचने में दिनभर लग जाता है और शाम को 5 बजे के बाद भुगतान मिलना शुरू होता है, जो रात के 8-9 बजे तक चलता रहता है। इतनी रात में गांव लौटने के लिए सवारी नहीं मिलती और बाजार भी बंद हो चुका होता है। हम बाजार से जरूरत का कोई सामान नहीं खरीद पाते। साथ ही रात में नगदी लेकर गांव लौटने में लूटने का खतरा रहता है। इन सब मुसीबतों से बचने के लिए अधिकतर आदिवासी गांव आए व्यापारी को औने-पौने दामों में अनाज बेच देते हैं। उसने कहा- सरकार अगर किसानों का भला चाहती है, तो उन्हें गांव के नजदीक मण्डियों का विस्तार करना चाहिए। साथ ही बिना लाइसेंस के सिर्फ पेन कार्ड के सहारे व्यापारियों को गांव में आने से रोकना चाहिए।
गुलाब ने कहा- अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून बन जाता है, तो इस तरह लूटने वाले व्यापारियों पर कार्रवाई होगी । सजा और जुर्माने का प्रावधान होगा और किसान लुटने से बच जाएगा। गुलाब की तरह प्रदेश के एक करोड़ से अधिक छोटे-छोटे किसानों ने मध्यप्रदेश सरकार से मांग की है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानून में शामिल किया जाए और व्यापारी को कृषि उपज मण्डियों के मार्फत सौदा करने को बाध्य किया जाए। साथ ही मण्डियों की संख्या बढ़ाई जाए। तभी सरकार किसानों के हितों की रक्षा कर पाएगी।
परमार्थ समाज सेवी संस्थान के समन्वयक चण्डी प्रसाद पाण्डेय का कहना है कि दरअसल यहां के किसानों में इतनी जागरूकता नहीं थी, इसलिए ग्रामीण गांव में आए व्यापारियों का विरोध नहीं कर पाते थे। संस्थान ने कई कार्यशालाओं के माध्यम से इन्हें खेती सही तकनीक के इस्तेमाल से अधिक उपज प्राप्त करने और मण्डी में फसल के सही दाम में उसे बेचने के कई उपाय और सरकारी नियमों की जानकारी दी। धीरे-धीरे इनमें जागरूकता आ रही है और किसान विरोध करना सीख गए हैं।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में कुल 269 मण्डियां और 298 उप मण्डियां हैं। इसमें से लगभग 50 से अधिक मण्डियों में इस समय कारोबार पूरी तरह से ठप है। मण्डियों में कारोबार घटने से मंडी बोर्ड का टैक्स लगभग 70 फीसद घटा है। मण्डी बोर्ड की मानें तो व्यापारी मण्डी शुल्क से बचने के लिए अक्सर ऐसा करते हैं।
मण्डी कर्मचारियों की मानें तो ये सब मॉडल मंडी एक्ट की वजह से हो रहा है, जो राज्य में 1 मई से लागू हो चुकी है, इसमें निजी क्षेत्र में मण्डियों की स्थापना के लिए प्रावधान है। इसमें गोदाम, साइलो, कोल्ड स्टोरेज को भी प्राइवेट मण्डी घोषित करने का प्रावधान किया गया है। साथ ही इस एक्ट में मण्डी के बाहर सीधे खरीद का प्रावधान भी है। सरकार की मानें तो यह सब उन्होंने किसानों के भले के लिए किया है, जबकि किसानों का कहना है कि उन्हें उपज का सही दाम मिले, इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून बने । साथ ही मण्डी गांव के आसपास ही स्थापित हो।
इसके साथ ही यह भी बता दें, कि मध्यप्रदेश के मण्डियों में 6500 कर्मचारी कार्यरत हैं, 45,000 रजिस्टर्ड कारोबारी हैं। मंडी बोर्ड इन कारोबारियों से 1.5 फीसदी शुल्क लेकर 0.5 फीसदी राज्य सरकार को देता है। एक फीसदी से कर्चमारियों को वेतन-पेंशन और बिजली बिल के साथ ही मेंटनेंस पर खर्च किया जाता है। हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मण्डी शुल्क घटाकर एक रुपए 70 पैसे से मात्र 50 पैसे कर दिए हैं। (इंडिया डेटलाइन)
( सुश्री सरकार भोपाल स्थित पत्रकार हैं। उन्हें ग्रामीण रिपोर्टिंग का पुरस्कार मिल चुका है।)
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