राकेश अचल
हाट बाजार हमारी सभ्यता के अभिन्न अंग रहे हैं लेकिन इनका उपयोग और उपयोगिता केवल ग्रामीण क्षेत्रों के लिए है। तेजी से बढ़ रहे शहरों में हाट-बाजार की संस्कृति न केवल शहरों को विकृत कर रही है बल्कि समस्याएं भी खड़ी कर रही है। हाट-बाजारों से शहरों में आवागमन की समस्या के साथ ही संक्रमण काल से जुड़ी और तमाम समस्याओं को भी बल मिल रहा है लेकिन इन अवैध हाट बाजारों से होने वाली अवैध आमदनी के कारण स्थानीय निकाय और स्थानीय पुलिस इन्हें पनपाने में लगी हुई है। शहरों में अवैध हाट-बाजार लगाने वाले माफिया ने सरकार की तमाम योजनाओं को भी नाकाम कर दिया है।
आप ये तस्वीरें देख रहे हैं। ये हैं तो ग्वालियर के हृदय स्थल महाराज बाड़ा की लेकिन आपको ऐसी तस्वीरें मध्यप्रदेश के ही नहीं, देश के अधिकतर शहरों क्या, देश की राजधानी दिल्ली तक में मिल जाएंगी। देश में वाहनों के लिए बनाई गई सड़कें और पैदल चलने के लिए बनाये गए फुटपाथ इन अवैध हाट-बाजारों के कारण या तो गायब हो गए हैं या फिर सिकुड़ गए हैं। सड़कों और फुटपाथों पर सजने वाले ये बाजार पुलिस और स्थानीय निकायों को रोजाना लाखों रुपए की चौथ वसूली का स्रोत बन गए हैं लेकिन किसी भी शहर में कोई भी सरकारी एजेंसी और राजनीतिक दल इन अवैध हाट-बाजारों को समूल समाप्त नहीं कर पा रहे हैं
मध्यप्रदेश में इन फुटपाथी और सड़क पर सजने वाले बाजारों को हटाने के लिए समय-समय पर मुहिम चलती है। छोटी से बड़ी अदालतें इस बारे में समय-समय पर निर्देश देतीं हैं लेकिन स्थानीय निकाय और स्थानीय पुलिस फौरी कार्रवाई के अलावा कुछ नहीं करती। इन दोनों संस्थाओं ने मिलकर मध्यप्रदेश में फुटपाथियों के लिए बनाई गई योजनाओं को नाकाम कर दिया है। हाल में मध्यप्रदेश सरकार ने 330 करोड़ रुपए खर्च किए लेकिन सब पानी में चला गया। इन फुटपाथियों के लिए प्रदेश के हर शहर में हाकर्स जेन बनाए गए,महिलाओं के लिए अलग से हॉकर्स जोन बने लेकिन किसी भी शहर में कोई हॉकर्स जोन आबाद नहीं हुआ। सब के सब वीरान हैं जबकि इनके निर्माण पल हर नगर निगम और नगर पालिका ने करोड़ों की राशि खर्च की है।
सड़कों पर लगने वाले इन हाट बाजारों से बेशक लाखों लोगों को रोजगार मिलता है लेकिन किस शर्त पर?शहरों की यातायात व्यवस्था को चौपट कर। इन फुटपाथी कारोबारियों की वजह से न एम्बुलेंस निर्बाध निकल सकती है और न दमकल। आम यातायात की तो आप बात ही नहीं कर सकते। कम से कम ग्वालियर जैसे ऐतिहासिक शहर तो इस आप संस्कृति की वजह से आजादी के सात दशक बाद भी गांव ही बने हुए हैं। शहरों में एक तरफ मॉल संस्कृति विकसित हो रही है और दूसरी तरफ हाट-बाजार संस्कृति अपनी जगह मौजूद है इस लिए समस्याएं हैं. मॉल बन गए हैं लेकिन उनके पास पर्याप्त पार्किंग नहीं है और हाथ ठेले तथा फुटपाथों पर दुकाने लगाने वाले रही-सही कसर पूरी कर देते हैं। सवाल यह है कि सरकार यानी स्थानीय सरकार शहरी क्षेत्रों में हाथ ठेले वालों और फुटपाथों पार कारोबार करने वालों के प्रति सख्त क्यों नहीं है? क्या स्थानीय निकाय और स्थानीय पुलिस का गठजोड़ किसी भी सरकारी योजना को पलीता लगा सकता है? क्या यह सब स्थानीय राजनेताओं के संरक्षण का नतीजा है?
मध्यप्रदेश में तत्कालीन मुख्यम्नत्री बाबूलाल गौर ने शहरी क्षेत्रों में इस अराजकता से निबटने के लिए हॉकर्स जोन बनाने की एक शानदार योजना बनाई। इस पर अमल भी हुआ। रातों रात हाकर्स जोन बन गए लेकिन स्थानी सरकार एक भी हॉकर्स जोन को आबाद नहीं करा सका। जिनके लिए हॉकर्स जोन बनाए गए, वे वहां गए ही नहीं क्योंकि उन्हें तो सड़कें और फुटपाथ घेरकर कारोबार करने की आदत पड़ चुकी है। दरअसल फुटपाथ और सड़कों पर कारोबार करने वाला भी एक माफिया है जिसे स्थानीय पार्षदों और विधायकों का ही नहीं मंत्रियों तक का संरक्षण प्राप्त होता है इसलिए स्थानीय प्रशासन चाहकर भी इनके खिलाफ सख्त और प्रभावी कार्रवाई नहीं कर पाता।
हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने पथ व्यवसायियों के कल्याण और उनको आजीविका चलाने के उचित अवसर देने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश पथ विक्रेता योजना-2020 प्रारंभ की। इस योजना के तहत पथ विक्रेताओं का सर्वेक्षण हर 3 वर्ष में कम से कम एक बार किया जाएगा। पथ व्यवसायी को पोर्टल के माध्यम से पहचान-पत्र और विक्रय प्रमाण-पत्र मिलेगा। नगरीय क्षेत्र के भीतर आवेदक को केवल एक विक्रय स्थल की अनुमति मिलेगी। अब यह योजना भी कागजों में सीमित होकर रह गई है और इसका हश्र भी हॉकर जोन योजना जैसा होने वाला है।
ग्वालियर में रक्षाबंधन और दीपावली के मौके पर स्थानीय विधायक की पहल पर इन हाथ ठेला और फुटपाथी कारोबारियों को पंद्रह दिन की अनुमति दिला दी थी जो एक बार फिर स्थायी अनुमति में बदल गई। इस अवैध और संगठित धंधे के कारण नजरबाग मार्केट, सुभाष मार्केट, गांधी मार्केट के स्थायी कारोबारियों का धंधा चौपट है .ये स्थायी बाजार वाले रोते रहते हैं लेकिन इसी को इसकी फ़िक्र नहीं है। ग्वालियर में विक्टोरिया मार्केट में करोड़ों रुपए खर्च कर केंद्रीय मदद से एक संग्रहालय बनाया गया है लेकिन उसके सामने भी यही अवैध बाजार सजे हैं। पोस्ट मास्टर जनरल कार्यालय, स्टेट बैंक, टाउनहाल और शासकीय प्रेस के प्रवेश द्वार तक इन अवैध कारोबारियों के कब्जे में हैं। उपनगर ग्वालियर और मुरार में भी यही स्थिति है।
प्रदेश की राजधानी भोपाल, धर्म नगरी उज्जैन, मिनी मुम्बई इंदौर, संस्कारधानी जबलपुर यानी हर शहर में कमोबेश यही दुर्दशा है। सरकार लाचार है और जनता बेहाल लेकिन फुटपाथ और सड़कों पर कारोबार करने वाले मजे में हैं। इस अराजकता की वजह से प्रदेश में शहर कुरूप हो रहे हैं, पर्यटन व्यवसाय प्रभावित हो रहा है। यातायात से जुड़ी समस्याएं सिर उठाए खड़ी हैं। पता नहीं कब तक राजनीति इस अराजकता को पालती-पोसती रहेगी? क्योंकि सारा लोकतंत्र, सारा मानवाधिकार इसी अवैध कारोबार के संरक्षण के इर्दगिर्द केंद्रित है। अगर आपके शहर में भी कमोबेश यही दशा है तो कृपा कर मुखर होइए।
(अचल मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)