सागर जिले के इस गांव से विवि की खुदाई में निकला था पुरातत्व का अनमोल खजाना, अब पहली बार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कर रहा उत्खनन
भोपाल. शिवकुमार विवेक. मध्यप्रदेश के सागर जिले के ऐरण में फिर खुदाई शुरू हुई है। यहाँ दो से अधिक बार सागर विश्वविद्यालय के साथ अन्य संस्थाओं ने उत्खनन किया और भारतीय संस्कृति के अनुद्धाटित पहलुओं व समृद्ध अतीत की कहानी कहने वाले साक्ष्यों को उजागर किया किन्तु भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पहली बार यह काम करेगा। वह न केवल नवपाषाण काल के अवशेषों को जुटाकर प्राचीन बसाहट को जाँचेगा अपितु किसी समय उज्जयिनी-पाटलिपुत्र राजमार्ग के इस व्यावसायिक महानगर की संरचना व सभ्यता को जानने की कोशिश करेगा।
यदि पुरातत्व सर्वेक्षण ने वर्षों से वीरान पड़े इस अतीत के आँगन का व्यापक उत्खनन किया और अवशेषों को राज्य व केन्द्र सरकार ने ठीक से सहेजा और प्रदर्शित किया तो यह प्रदेश की शानदार प्राचीन नगरीय विरासत हो सकती है। कालजयी ऐरण प्राचीन सुख-समृद्धि, धार्मिक आस्था, स्त्री सम्मान व युद्धों के रक्तपात की प्रत्यक्षदर्शी है। गुप्तों के शासन, आक्रांता हूणों द्वारा नगर को जलाकर राख करने और अंगरेजों की रक्त क्रांति के प्रमाण यहाँ मौजूद हैं।
भोपाल-दिल्ली रेलवे मार्ग पर स्थित मंडी बामौरा रेलवे स्टेशन अथवा सागर जिले के खुरई कस्बे से जाने वाले रास्ते पर बीस किमी दूर छोटी सी आबादी का ऐरण गाँव किसी समय प्राचीन उज्जयिनी-पाटलिपुत्र राजमार्ग पर स्थित बड़ा नगर था। राजपथ से उज्जयिनी से पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) जाने वाले यात्रियों के रथ यहाँ रुकते थे और यहाँ के बाज़ारों और अट्टालिकाओं के दर्शन करते थे। यहाँ की सतह से नवपाषाणकाल व ताम्राश्मयुगीन औज़ार मिले हैं और गुप्तकाल की शासन प्रणाली की जानकारी अभिलेखों से मिलनी शुरू होती है। बताया जाता है कि जयशंकर प्रसाद के सुप्रसिद्ध नाटक ध्रुवस्वामिनी का कथ्य इसी नगर का है।
समुद्रगुप्त के राज करने और इसे स्वभोगनगर बनाने के साक्ष्य मिलते हैं। शकों के आक्रमण को रोकने के लिए समुद्रगुप्त ने 350-60 ईसवी में इसे सैनिक छावनी बनाया था। इसी समय मंदिर बनाने का काम शुरू हुआ। भगवान विष्णु की चौदह फीट ऊँची मूर्ति इसी समय की है जिसमें गोलाकार आभामंडल दुर्लभ है। यह मंदिर चार ऊँचे स्तंभों पर है। पास में ही नरसिंह भगवान का ध्वस्त मंदिर है। सती का पाँचवी सदी का स्तंभ मौजूद है जो देश में सबसे पुराना सती साक्ष्य माना जाता है। यह सेनापति गोपराज की पत्नी के सती होने का साक्ष्य है। यह भी असुरक्षित है। इसके अलावा, बारह सौ वर्ष पुरानी वाराह की मूर्ति दुनिया में वाराह की सबसे बड़ी प्रतिमा है। इसकी लंबाई चौदह फीट व ऊँचाई बारह फीट है। इतिहास बताता है कि हूण शासक मिहिर कुल ने इस नगर को जलाकर राख कर दिया था जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं।
ऐरण में सागर विश्वविद्यालय के तत्कालीन विभागाध्यक्ष व देश के सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता प्रो. कृष्णदत्त वाजपेयी के निर्देशन में याठ-सत्तर के दशक में खुदाई की गई थी। इसके बाद 2004 में इसी विवि के डॉ. विवेकदत्त झा के नेतृत्व में उत्खनन हुआ। दमोह से सांसद व केन्द्रीय संस्कृत मंत्री प्रह्लाद पटेल ने इसके व्यापक अध्ययन के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को निर्देशित किया है जिसके तहत पुरातत्व सर्वेक्षण नागपुर की टीम यहाँ पहुँची है। टीम के मुखिया, ऐरण परियोजना के निदेशक डॉ. मनोज कुर्मी, जो नागपुर में अधीक्षक पुरातत्व हैं, ने ‘स्वदेश’ को बताया कि यह लगभग तीन साल की परियोजना है। फिलहाल सितंबर तक का लाइसेंस मिला है। डॉ. कुर्मी सागर विवि के शोधार्थी रहे हैं। उनके साथ सागर विवि व अमरकण्टक विवि इस काम में शामिल हो रहे हैं। अमरकण्टक में पुरातत्व के प्राध्यापक डॉ मोहनलाल चढ़ार ऐरण के रहने वाले हैं और इसी धरोहर पर शोध कर चुके हैं। डॉ. कुर्मी जबलपुर के त्रिपुरी व राजस्थान के कालीबंगा में भी उत्खनन कर रहे है और अयोध्या उत्खनन से जुड़े रहे हैं। कहते हैं- ऐरण देश के किसी भी प्राचीन पुरातात्विक स्थल से कम नहीं है।
सागर विश्वविद्यालय के पूर्व पुरातात्विक छायाकार व पुरातत्व के जानकार डॉ. प्रदीप शुक्ल का कहना है कि ऐरण की प्राचीनता का विवरण कई ग्रंथों व अभिलेखों में मिलता है। यह स्वभोगनगर, ऐरिकेण व ऐरणी आदि नामों से जाना गया। यदि यहाँ क्षैतिजाकार उत्खनन होगा तो नगर संरचना व सभ्यता के कई अवशेष निकल सकते हैं। यद्यपि यह बहुत हद तक इसलिए संभव नहीं है कि प्राचीन नगर पर ही आज का गाँव बसा है। एएसआई की नागपुर उत्खनन शाखा फिलहाल दस बाई दस फीट की नाप में खुदाई करने जा रही है। इसके काम शुरू करने के बाद ही संभावनाएँ, सीमाएँ व सहेजने के उपाय सामने आएँगे।