
दमोह से नरेन्द्र दुबे
इंडिया डेटलाइन विशेष. मध्यप्रदेश की दमोह विधानसभा सीट के लिए आसन्न उपचुनाव की तारीख भले घोषित नहीं हुई है, पर राजनीतिक और प्रशासनिक सरगर्मियां बढ़ गई हैं । कलेक्टर के नेतृत्व में तैयारियों को अंजाम दिया जा रहा है तो कांग्रेस और भाजपा अपनी जमीनी तैयारियों में लगी है। मुख्यमंत्री शीघ्र ही दमोह आकर मेडीकल कॉलेज के लिए भूमिपूजन कर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करेंगे ।
यह सीट यहाँ के कांग्रेस विधायक राहुल सिंह द्वारा दलबदल कर भाजपा में शामिल होने के कारण खाली हुई है। दमोह की जनता के लिए उपचुनाव कोई नई बात नहीं है। जनता दमोह सीट पर चौथी बार उपचुनाव देखेगी। यद्यपि पिछले तीन बार अप्रत्याशित कारणों से उपचुनाव हुए। पर इस बार खुद निवृत्तमान विधायक ने अपने शौक से यहाँ उपचुनाव आहूत कराए। राहुल सिंह लोधी का ही भाजपा से लड़ना तय माना जा रहा है । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके नजदीकी मंत्री जिला संगठन को संकेत दे चुके हैं। उधर कांग्रेस में प्रत्याशी चयन को लेकर अनिश्चितता है और दर्जन भर गंभीर, अगंभीर लोग दावेदारी कर रहे हैं ।
गौरतलब है कि पहले आमचुनाव 1952 से ही दमोह सीट अस्तित्व में है और तब से अब तक यह चौथा उपचुनाव है। पहला उपचुनाव 1975 में हुआ। आपातकाल से ठीक पहले। वजह बना 1972 में निर्दलीय चुनाव जीते आनंद कुमार श्रीवास्तव का चुनाव सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित कर सीट रिक्त किया जाना। इसमें श्री श्रीवास्तव को चुनाव लड़ने 6 वर्ष के लिए अपात्र घोषित किया गया था । नतीजतन उपचुनाव हुए जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी प्रभुनारायण टंडन के मुकाबले आनंद श्रीवास्तव की धर्मपत्नी श्रीमती कृष्णा आनंद चुनाव मैदान में थीं। श्री टंडन निर्वाचित हुए और दूसरी बार विधायक बने। श्री टंडन 1967 में दमोह से ही विधायक रह चुके थे। दूसरी बार उपचुनाव हुए 1984 में तत्कालीन विधायक चंद्रनारायण टंडन के आकस्मिक निधन के कारण। तब कांग्रेस प्रत्याशी डॉ अनिल टंडन के मुकाबले थे भाजपा के प्रत्याशी जयंत मलैया। दोनों युवा थे और जिंदगी का पहला चुनाव लड़ रहे थे। यद्यपि दोनों के पिता क्रमशः प्रभुनारायण टंडन और विजय कुमार मलैया 1980 के लोकसभा चुनाव में आमने सामने थे और कांग्रेस प्रत्याशी श्री टंडन विजयी होकर लोकसभा पहुंचे थे। 1984 के उपचुनाव में जयंत मलैया लगभग 9 हजार वोट से विजयी हुए और पहली बार दमोह सीट पर भाजपा ( अथवा पूर्व नाम जनसंघ) का खाता खुला।
तीसरी बार उपचुनाव 1990 में हुआ। वजह थी आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी जयंत मलैया के मुकाबले कांग्रेस से लड़ रहे पूर्व सांसद प्रभुनारायण टंडन का हदयघात से आकस्मिक निधन। लिहाजा चुनाव स्थगित हो गए और फिर कुछ दिन बाद उपचुनाव हुए। बाजी बदल चुकी थी। प्रदेश में भाजपा की पटवा सरकार बन चुकी थी। उपचुनाव में जयंत मलैया के मुकाबले कांग्रेस से प्रत्याशी बने स्वर्गीय प्रभुनारायण टंडन के पुत्र डॉ अनिल टंडन। श्री मलैया लगभग 28 हजार वोट के अंतर से चुनाव जीते। वे तत्कालीन पटवा सरकार में आवास एवं पर्यावरण विभाग के राज्य मंत्री ( स्वतंत्र प्रभार) बने।
1984 से जयंत मलैया ही लगातार दमोह सीट से लड़ते आ रहे हैं। वे 9 चुनाव लड़कर 7 चुनाव जीते हैं। वे भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और लगभग 17 वर्ष प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हैं। गत चुनाव में कांग्रेस के राहुल सिंह लोधी से महज लगभग 800 वोट के अंतर से हार गये थे। पर राहुल सिंह के भाजपा प्रवेश ने सारे समीकरण बदल दिए और श्री मलैया को अपनी पुश्तैनी सीट पर फिर टिकट के लिए जद्दोजहद करना पड़ रही है।
दूसरी तरफ अब तक के तीन विधानसभा उपचुनाव में टंडन परिवार से ही कांग्रेस अपना प्रत्याशी बनाती रही है। इस उप चुनाव में भी जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय टंडन अपने लिए टिकट की मांग कर रहे हैं और मैदानी स्तर पर सक्रिय हैं। अजय टंडन के पिता चंद्रनारायण टंडन 1980 में यहां से विधायक निर्वाचित हुए थे। और खुद अजय टंडन दो बार जयंत मलैया के मुकाबले विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं यद्यपि उन्हें जीत नसीब नहीं हुई थी।
यह चौथा उपचुनाव सच में दिलचस्प होगा। प्रदेश में मात्र एक सीट पर उपचुनाव है। इसलिए दोनों दलों के नेताओं का रेला रहेगा। सीट के परिणाम से सरकार की सेहत पर तो असर नहीं आएगा। पर बुंदेलखंड और स्थानीय स्तर पर राजनीतिक समीकरणों में बहुत बदलाव होगा।
( दुबे दमोह में जनसत्ता के संवाददाता रहे हैं।)